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"स्त्री का सोचना एकान्त में / कात्यायनी" के अवतरणों में अंतर

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न जाने क्या सूझा
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चैन की एक साँस
एक दिन स्त्री को
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लेने के लिए स्त्री
खेल-खेल में भागती हुई
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अपने एकान्त को बुलाती है।
भाषा में समा गई
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छिपकर बैठ गई।
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उस दिन
+
एकान्त को छूती है स्त्री
तानाशाहों को
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संवाद करती है उससे।
नींद नहीं आई रात भर।
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उस दिन
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जीती है
खेल न सके कविगण
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पीती है उसको चुपचाप।
अग्निपिण्ड के मानिंद
+
तपते शब्दों से।
+
  
भाषा चुप रही सारी रात।
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एक दिन
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वह कुछ नहीं कहती अपने एकान्त से
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कोई भी कोशिश नहीं करती
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दुख बाँटने की
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बस, सोचती है।
  
रुद्रवीणा पर
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वह सोचती है
कोई प्रचण्ड राग बजता रहा।
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एकान्त में
 
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नतीजे तक पहुँचने से पहले ही
केवल बच्चे
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ख़तरनाक घोषित कर दी जाती है !
निर्भीक
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गलियों में खेलते रहे।
+
 
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03:22, 15 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

चैन की एक साँस
लेने के लिए स्त्री
अपने एकान्त को बुलाती है।

एकान्त को छूती है स्त्री
संवाद करती है उससे।

जीती है
पीती है उसको चुपचाप।

एक दिन
वह कुछ नहीं कहती अपने एकान्त से
कोई भी कोशिश नहीं करती
दुख बाँटने की
बस, सोचती है।

वह सोचती है
एकान्त में
नतीजे तक पहुँचने से पहले ही
ख़तरनाक घोषित कर दी जाती है !