भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

स्त्री को देखना / बोधिसत्व

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:40, 25 अक्टूबर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बोधिसत्व |संग्रह= }} दूर से दिखता है पेड़ पत्तियाँ नही...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


दूर से दिखता है पेड़

पत्तियाँ नहीं, फल नहीं


पास से दिखती हैं डालें

धूल से नहाई, सँवरी ।


एक स्त्री नहीं दिखती कहीं से

न दूर से, न पास से ।


उसे चिता में

जलाकर देखो

दिखेगी तब भी नहीं ।


स्त्री को देखना उतना आसान नहीं

जितना तारे देखना या

पिंजरा देखना ।