भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हँसती-खिलती सी गुड़िया, इक लम्हे में बेकार हुई / श्रद्धा जैन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
छो (हंसती-खिलती सी गुड़िया, इक लम्हे में बेकार हुई / श्रद्धा जैन का नाम बदलकर [[हँसती-खिलती सी गुड़ि...) |
|||
(इसी सदस्य द्वारा किये गये बीच के 4 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
{{KKCatGhazal}} | {{KKCatGhazal}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | तेरे हाथों से छूटी | + | तेरे हाथों से छूटी तो पल भर में मिस्मार हुई |
− | + | भोली-भाली सी गुड़िया इक, लम्हे में बेकार हुई | |
− | ज़ख्मों पर मरहम | + | ज़ख्मों पर मरहम रखने को, उसने हाथ बढाया था |
मेरे जीवन की पीड़ा ही, दोधारी तलवार हुई | मेरे जीवन की पीड़ा ही, दोधारी तलवार हुई | ||
− | + | गर्म फ़ज़ा झुलसाएगी, पैरों में छाले लाएगी | |
− | देती थी | + | जो देती थी साया मुझको, दूर वही दीवार हुई |
− | दिन | + | जिसने मुझे रब से माँगा था, दिन और रात दुआओं में |
− | वो कुर्बत | + | वो कुर्बत मालूम नहीं क्यूँ, उसके दिल पर भार हुई |
− | + | ||
− | + | मुद्दत से ख़ामोश हैं लब और सन्नाटा है ज़हन में पर | |
− | + | एक अजब सी तन्हाई, महसूस मुझे इस बार हुई | |
जिसके कारण खिलना सीखा जीवन के हर लम्हे ने | जिसके कारण खिलना सीखा जीवन के हर लम्हे ने | ||
− | शुकराना | + | शुकराना उसका श्रद्धा जो महकी और गुलज़ार हुई |
+ | |||
</poem> | </poem> |
13:18, 30 जनवरी 2015 के समय का अवतरण
तेरे हाथों से छूटी तो पल भर में मिस्मार हुई
भोली-भाली सी गुड़िया इक, लम्हे में बेकार हुई
ज़ख्मों पर मरहम रखने को, उसने हाथ बढाया था
मेरे जीवन की पीड़ा ही, दोधारी तलवार हुई
गर्म फ़ज़ा झुलसाएगी, पैरों में छाले लाएगी
जो देती थी साया मुझको, दूर वही दीवार हुई
जिसने मुझे रब से माँगा था, दिन और रात दुआओं में
वो कुर्बत मालूम नहीं क्यूँ, उसके दिल पर भार हुई
मुद्दत से ख़ामोश हैं लब और सन्नाटा है ज़हन में पर
एक अजब सी तन्हाई, महसूस मुझे इस बार हुई
जिसके कारण खिलना सीखा जीवन के हर लम्हे ने
शुकराना उसका श्रद्धा जो महकी और गुलज़ार हुई