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हमारी ज़िन्दगी का इस तरह हर साल कटता है / मुनव्वर राना
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हमारी ज़िन्दगी का इस तरह हर साल कटता है
कभी गाड़ी पलटती है कभी तिरपाल कटता है
दिखाते हैं पड़ोसी मुल्क आँखें तो दिखाने दो
कहीं बच्चों के बोसे से भी माँ का गाल कटता है
इसी उलझन में अकसर रात आँखों में गुज़रती है
बरेली को बचाते हैं तो नैनीताल कटता है
कभी रातों के सन्नाटे में भी निकला करो घर से
कभी देखा करो गाड़ी से कैसे माल कटता है
सियासी वार भी तलवार से कुछ कम नहीं होता
कभी कश्मीर जाता है कभी बंगाल कटता है .