भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हमारे इर्द-गिर्द / महेन्द्र भटनागर

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:33, 6 अगस्त 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र भटनागर |संग्रह=संकल्प / महेन्द्र भटनागर }}मेर...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरे देश में

ओ करोड़ों मज़लूमो !

तुम्हें

अभी फुटपाथों से

छुटकारा नहीं मिला,

खौलते ख़ून के समुन्दर में

तैरते-तैरते

किनारा नहीं मिला !

बीसवीं शताब्दी के

इस आँठवें दशक में भी

सिर पर

खुला आसमान है,

नीचे

नंगी धरती।

सूनी निगाहें

ठण्डी आहें

विकलांग निरीहता

सर्दी, बरसात, आँधी !


मोटे-मोटे

खादीपोश

बदकिरदार

व्यापारियों-पूँजीपतियों,

मकान-मालिकों,

कॉलोनी-धारियों,

वकील-नेताओं के

मुँह में

यथा-पूर्व

विराजमान है -- 'गाँधी'!

बँगलों और कोठियों में

दीवारों पर

टँगे हैं गाँधी !

(या सलीब पर लटके हैं गाँधी!)

तिकड़मी मस्तिष्क के

बद-मिज़ाज

नये भारत के ये 'भाग्य-विधाता'

'एम्बेसेडर' में

धूल उड़ाते

मज़लूमों पर थूकते

मानवता के रौंदते

अलमस्त घूमते हैं,

किंचित सुविधाओं के इच्छुक

उनके चरण चूमते हैं !


मेरी पूरी पीढ़ी हैरान है !

नेतृत्व कितना बेईमान है !