भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हमारे सामने आओ कि हम भी देख सकें / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 17: पंक्ति 17:
  
 
हमारे बाग़ में उतरी हैं बिजलियाँ कैसी  
 
हमारे बाग़ में उतरी हैं बिजलियाँ कैसी  
हटो भी काली घटाओं! कि हम भी देख सकें
+
हटो भी काली घटाओ! कि हम भी देख सकें
  
 
गये किधर वे उमंगो भरे बहार के दिन  
 
गये किधर वे उमंगो भरे बहार के दिन  

02:39, 7 जुलाई 2011 का अवतरण


हमारे सामने आओ कि हम भी देख सकें
नज़र नज़र से मिलाओ कि हम भी देख सकें

हँसी तो होठों पे लाओ कि हम भी देख सकें
कुछ ऐसे प्यार दिखाओ कि हम भी देख सकें

ये कैसा खेल है आँखों की ओट होता रहे!
कभी तो परदा हटाओ कि हम भी देख सकें

हमारे बाग़ में उतरी हैं बिजलियाँ कैसी
हटो भी काली घटाओ! कि हम भी देख सकें

गये किधर वे उमंगो भरे बहार के दिन
दिया कोई तो जलाओ कि हम भी देख सकें

सुना है तुमने उगाए हैं पुतलियों में गुलाब
हमें भी पास बुलाओ कि हम भी देख सकें