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"हमें निज धर्म पर चलना बताती रोज रामायण / बिन्दु जी" के अवतरणों में अंतर
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कहीं छवि विष्णु की बाकी, कहीं शंकर की है झाँकी। | कहीं छवि विष्णु की बाकी, कहीं शंकर की है झाँकी। | ||
हृदय आनंद झूले पर झुलाती रोज रामायण॥ | हृदय आनंद झूले पर झुलाती रोज रामायण॥ | ||
− | सरल कविता | + | सरल कविता की कुंजों में बना मंदिर है हिंदी का। |
जहाँ प्रभु प्रेम का दर्शन कराती रोज रामायण॥ | जहाँ प्रभु प्रेम का दर्शन कराती रोज रामायण॥ | ||
− | कभी वेदों के सागर में कभी गीता | + | कभी वेदों के सागर में कभी गीता की गंगा में। |
− | सभी रस ‘बिन्दु’ में मन को | + | सभी रस ‘बिन्दु’ में मन को दबाती रोज रामायण॥ |
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01:02, 17 अगस्त 2020 के समय का अवतरण
हमें निज धर्म पर चलना बताती रोज रामायण।
सदा शुभ आचरण करना सिखाती रोज रामायण॥
जिन्हें संसार सागर से उतर कर पार जाना है।
उन्हें सुख से किनारे पर लगाती रोज रामायण॥
कहीं छवि विष्णु की बाकी, कहीं शंकर की है झाँकी।
हृदय आनंद झूले पर झुलाती रोज रामायण॥
सरल कविता की कुंजों में बना मंदिर है हिंदी का।
जहाँ प्रभु प्रेम का दर्शन कराती रोज रामायण॥
कभी वेदों के सागर में कभी गीता की गंगा में।
सभी रस ‘बिन्दु’ में मन को दबाती रोज रामायण॥