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"हम तो काँटे ही चुनते हैं / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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दंभ, चाटुकारी, जन-रंजन | दंभ, चाटुकारी, जन-रंजन | ||
धन्य वही कवि इनसे प्रतिक्षण | धन्य वही कवि इनसे प्रतिक्षण | ||
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हम तो काँटे ही चुनते हैं | हम तो काँटे ही चुनते हैं | ||
मिले फूल-फल उन्हें, लोग जिनकी पिकध्वनि सुनते हैं | मिले फूल-फल उन्हें, लोग जिनकी पिकध्वनि सुनते हैं | ||
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02:21, 20 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
हम तो काँटे ही चुनते हैं
मिले फूल-फल उन्हें, लोग जिनकी पिकध्वनि सुनते हैं
जैसा अवसर वैसा गायें
श्रोता क्यों ताली न बजायें!
हम तो बस उनकी रचनायें
पढ़कर सिर धुनते है
तिकड़म, दलबंदी, विज्ञापन
दंभ, चाटुकारी, जन-रंजन
धन्य वही कवि इनसे प्रतिक्षण
जो ताने बुनते हैं
हम तो काँटे ही चुनते हैं
मिले फूल-फल उन्हें, लोग जिनकी पिकध्वनि सुनते हैं