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"हम नूतन निर्माण करेंगे / सावित्री नौटियाल काला" के अवतरणों में अंतर

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हम नूतन निर्माण करेंगे  
 
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प्रलय के चाहे घन घिर आयें|
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प्रलय के चाहे घन घिर आयें।
नभ के तारे धरती पर आये|
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नभ के तारे धरती पर आये।
हम अपनी संस्कृति का आह्वान करेंगे|
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हम अपनी संस्कृति का आह्वान करेंगे।
  
 
युगों युगों से पीड़ित मानवता के  
 
युगों युगों से पीड़ित मानवता के  
दुख दालान का हम सदा प्रयास करेंगे|
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दुख दालान का हम सदा प्रयास करेंगे।
नव जीवन का हम सब अनुसंधान करेंगे|
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नव जीवन का हम सब अनुसंधान करेंगे।
सर्वत्र फैली दानवता का हम संहार करेंगे||
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सर्वत्र फैली दानवता का हम संहार करेंगे।।
  
चाहे बाधा पर बाधाएं आयें|
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चाहे बाधा पर बाधाएं आयें।
घनघोर निराशा के बादल मंडराये|
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घनघोर निराशा के बादल मंडराये।
चाहे कितनी विपदा पर विपदा आयें|
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चाहे कितनी विपदा पर विपदा आयें।
हम नव जीवन संधान करेंगे||
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हम नव जीवन संधान करेंगे।।
  
चारों ओर कांटे चाहे बिछ जायें|
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चारों ओर कांटे चाहे बिछ जायें।
पैरों के छाले भी छिल जायें|
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पैरों के छाले भी छिल जायें।
 
शूलों को भी फूल बनाकर  
 
शूलों को भी फूल बनाकर  
हम नव पथ का निर्माण करेंगे||
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हम नव पथ का निर्माण करेंगे।।
  
विश्व जब रसातल को जायें|
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विश्व जब रसातल को जायें।
चाहे विपत्ति के पहाड़ टूट जायें|
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चाहे विपत्ति के पहाड़ टूट जायें।
चारों ओर प्रलय ही प्रलय हो जाये|
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चारों ओर प्रलय ही प्रलय हो जाये।
हम पुनर्जीवन का सदा निर्माण करेंगे|
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हम पुनर्जीवन का सदा निर्माण करेंगे।
  
 
अपने सुमधुर गीतों के द्वारा  
 
अपने सुमधुर गीतों के द्वारा  
पीड़ित जनों का उद्धार करेंगे|
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पीड़ित जनों का उद्धार करेंगे।
 
जन मानस की असीम असह्य पीड़ा का  
 
जन मानस की असीम असह्य पीड़ा का  
अब हम सब मिलकर ही निदान करेंगे||
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अब हम सब मिलकर ही निदान करेंगे।।
 
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21:45, 9 मई 2014 के समय का अवतरण

हम नूतन निर्माण करेंगे
प्रलय के चाहे घन घिर आयें।
नभ के तारे धरती पर आये।
हम अपनी संस्कृति का आह्वान करेंगे।

युगों युगों से पीड़ित मानवता के
दुख दालान का हम सदा प्रयास करेंगे।
नव जीवन का हम सब अनुसंधान करेंगे।
सर्वत्र फैली दानवता का हम संहार करेंगे।।

चाहे बाधा पर बाधाएं आयें।
घनघोर निराशा के बादल मंडराये।
चाहे कितनी विपदा पर विपदा आयें।
हम नव जीवन संधान करेंगे।।

चारों ओर कांटे चाहे बिछ जायें।
पैरों के छाले भी छिल जायें।
शूलों को भी फूल बनाकर
हम नव पथ का निर्माण करेंगे।।

विश्व जब रसातल को जायें।
चाहे विपत्ति के पहाड़ टूट जायें।
चारों ओर प्रलय ही प्रलय हो जाये।
हम पुनर्जीवन का सदा निर्माण करेंगे।

अपने सुमधुर गीतों के द्वारा
पीड़ित जनों का उद्धार करेंगे।
जन मानस की असीम असह्य पीड़ा का
अब हम सब मिलकर ही निदान करेंगे।।