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Kavita Kosh से
हम अश्क जुदाई के गिरने ही नहीं देते <br>
बेचैन सी पलओं पलकों में मोती से पिरोते हैं <br><br>
होता चला आया है बेदर्द ज़माने में <br>
सच्चाई की राहों में काँटे सभी बोतें हैं <br><br>
मिलने को तो मिलते हैं नश्तर से चुभोते हैं <br><br>