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हरी-हरी पत्तियाँ / संजीव बख़्शी

Kavita Kosh से
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उसने दरवाज़ा खटखटाया और पूछा मेरा हाल
जैसे-तैसे मैंने क़िताब का वह पन्ना खोल लिया
जहाँ लिखा हुआ है—
आकाश

इस क़िताब में जहाँ
पृथ्वी, हवा, पानी या अग्नि लिखा हुआ है
ज़रूरत हो और खोल लूँ यह पन्ना इसलिए
कचनार की
पत्तियों को रख दिया है
पन्नों के बीच दबा कर ।