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हरैं-हरैं ज्ञान के गुमान घटि जानि लगे / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’

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हरैं-हरैं ज्ञान के गुमान घटि जानि लगे,
जोग के विधान ध्यान हूँ तैं टरिबै लगे ।
नैननि मैं नीर सकल शरीर छयौ,
प्रेम-अदभुत-सुख सूक्ति परिबै लगे ॥
गोकुल के गाँव की गली में पग पारत ही,
भूमि कैं प्रभाव भाव औरै भरिबै लगे ।
ज्ञान मारतंड के सुखाये मनु मानस कौं,
सरस सुहाये घनश्याम करिबै लगे ॥२३॥