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हर क़दम पर एक क़ौमी गीत गाते जाइए / योगेन्द्र दत्त शर्मा
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हर क़दम पर एक क़ौमी गीत गाते जाइए ।
मुफ़लिसों की खाल का जूता बनाते जाइए ।
ज़िन्दगी की तल्ख़ क़ीमत हम चुकाएँगे मगर,
आप इस तकलीफ़ का ज़ज्बा भुनाते जाइए ।
पीजिए रंगीन मौसम की महक वाला अरक,
वक़्त का कड़वा ज़हर हमको पिलाते जाइए ।
क़ामयाबी का है ये नुस्ख़ा इसे मत भूलिए,
आप जिस सीढ़ी चढ़े, उसको गिराते जाइए ।