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"हर पल मैं देखूँ, मित्रों,बस एक यही सपन / ओसिप मंदेलश्ताम" के अवतरणों में अंतर
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हर पल मैं देखूँ, मित्रों, बस एक यही सपन | हर पल मैं देखूँ, मित्रों, बस एक यही सपन | ||
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किसी अदॄश्य जादू मैं जैसे डूबा है यह वन | किसी अदॄश्य जादू मैं जैसे डूबा है यह वन | ||
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औ' गूँजे यहाँ कुछ अशान्त-सी हल्की सरसराहट | औ' गूँजे यहाँ कुछ अशान्त-सी हल्की सरसराहट | ||
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ज्यूँ रेशमी परदों की सुन पड़ती धीमी फरफराहट | ज्यूँ रेशमी परदों की सुन पड़ती धीमी फरफराहट | ||
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मुझे बेचैन करती हैं नित, जन की उन्मत्त मुलाकातें | मुझे बेचैन करती हैं नित, जन की उन्मत्त मुलाकातें | ||
− | + | आँखों में भर आश्चर्य होती हैं कुछ धुंधली-सी बातें | |
− | आँखों में भर आश्चर्य होती हैं धुंधली-सी बातें | + | |
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ज्यूँ राख तले चिंगारी जले कोई, औ' तुरन्त बुझ जाए | ज्यूँ राख तले चिंगारी जले कोई, औ' तुरन्त बुझ जाए | ||
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दिखाई नहीं देती ऊपर से जो, वे अस्पष्ट खरखराहटें | दिखाई नहीं देती ऊपर से जो, वे अस्पष्ट खरखराहटें | ||
− | + | चेहरे सपाट लगते हैं सब, धुंध में जैसे घिरे हुए | |
− | चेहरे सपाट लगते हैं सब,धुंध में जैसे घिरे हुए | + | |
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शब्द ठहर गए होंठों पर, लगते कुछ-कुछ डरे हुए | शब्द ठहर गए होंठों पर, लगते कुछ-कुछ डरे हुए | ||
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वनपक्षी भयभीत हैं बेहद--व्याकुल, तड़पें, छटपटाएँ | वनपक्षी भयभीत हैं बेहद--व्याकुल, तड़पें, छटपटाएँ | ||
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स्वर सुन गोलीचालन का इस संध्या वे अधमरे हुए | स्वर सुन गोलीचालन का इस संध्या वे अधमरे हुए | ||
− | + | '''रचनाकाल''' : दिसम्बर 1908 | |
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21:55, 7 मार्च 2010 के समय का अवतरण
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हर पल मैं देखूँ, मित्रों, बस एक यही सपन
किसी अदॄश्य जादू मैं जैसे डूबा है यह वन
औ' गूँजे यहाँ कुछ अशान्त-सी हल्की सरसराहट
ज्यूँ रेशमी परदों की सुन पड़ती धीमी फरफराहट
मुझे बेचैन करती हैं नित, जन की उन्मत्त मुलाकातें
आँखों में भर आश्चर्य होती हैं कुछ धुंधली-सी बातें
ज्यूँ राख तले चिंगारी जले कोई, औ' तुरन्त बुझ जाए
दिखाई नहीं देती ऊपर से जो, वे अस्पष्ट खरखराहटें
चेहरे सपाट लगते हैं सब, धुंध में जैसे घिरे हुए
शब्द ठहर गए होंठों पर, लगते कुछ-कुछ डरे हुए
वनपक्षी भयभीत हैं बेहद--व्याकुल, तड़पें, छटपटाएँ
स्वर सुन गोलीचालन का इस संध्या वे अधमरे हुए
रचनाकाल : दिसम्बर 1908