भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हवा कौन फिर तौल रहा / वैभव भारतीय

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:47, 25 मार्च 2024 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वैभव भारतीय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जब सबको ही प्यार चाहिए
धोखे कौन बनाता है फिर
सबको है झूठों से नफ़रत
झूठ कौन फैलाता है फिर?

जब उजियारों के सब क़ायल
जब सबकी इच्छा जीने की
तो कौन वहाँ अन्धियारों से
जीवन रस सबका खींच रहा?

सब मधुर-मधुर सुनना चाहें
तो कौन विष-बुझा बोल रहा
जब सब गणना से असहज हैं
तो हवा कौन फिर तौल रहा?