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"हवा शहर की / शशि पुरवार" के अवतरणों में अंतर

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हवा शहर की बदल गयी  
 
हवा शहर की बदल गयी  

11:43, 11 दिसम्बर 2017 का अवतरण

हवा शहर की बदल गयी
पंछी मन ही मन घबराये।

यूँ, जाल बिछाये बैठे है
सब आखेटक मंतर मारे
आसमान के काले बादल
जैसे, जमा हुये है सारे

छाई ऐसी घनघोर घटा
संकट, दबे पाँव आ जाये ।

कुकुरमुत्ते सा, उगा हुआ है
गली गली, चौराहे खतरा
लुका छुपी का, खेल खेलते
वध जीवी ने, पर है कतरा

बेजान तन पर नाचते है
विजय घोष करते, यह साये।

हरे भरे वन, देवालय पर
सुंदर सुंदर रैन बसेरा
यहाँ गूंजता मीठा कलरव
ना घर तेरा ना घर मेरा

पंछी उड़ता नीलगगन में
किरणे नयी सुबह ले आए।