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हुस्न ग़म्ज़े की कशाकश से छुटा मेरे बाद / ग़ालिब

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हुस्न ग़म्ज़े की कशाकश से छुटा मेरे बाद
बारे आराम से है अहले-जफ़ा मेरे बाद

मंसब-ए-शेफ़्तगी के कोई क़ाबिल न रहा
हुई म'अज़ूली-ए-अंदाज़-ओ-अदा मेरे बाद

शम'अ बुझती है तो उस में से धुआँ उठता है
शोला-ए-इश्क़ सियहपोश हुआ मेरे बाद

ख़ूँ है दिल ख़ाक में अहवाल-ए-बुताँ पर, यानी
उनके नाख़ुन हुए मोहताज-ए-हिना मेरे बाद

दरख़ुर-ए-अर्ज़ नहीं जौहर-ए-बेदाद को जा
निगह-ए-नाज़ है सुर्मे से ख़फ़ा मेरे बाद

है जुनूँ अहले-जुनूँ के लिये आग़ोश-ए-विदा
चाक़ होता है गरेबाँ से जुदा मेरे बाद

कौन होता है हरीफ़-ए-मए-मर्द-अफ़्गन-ए-इश्क़
है मुकर्रर लब-ए-साक़ी पे सला मेरे बाद

ग़म से मरता हूँ के इतना नहीं दुनिया में कोई
के करे तअज़ीयत-ए-मेहर-ओ-वफ़ा मेरे बाद

आये है बेकसी-ए-इश्क़ पे रोना 'ग़ालिब'
किसके घर जायेगा सैलाब-ए-बला मेरे बाद