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है अभी महताब बाक़ी और बाक़ी है शराब / फ़िराक़ गोरखपुरी

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Amitabh (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:39, 28 अगस्त 2009 का अवतरण

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है अभी महताब बाक़ी और बाक़ी है शराब
और बाक़ी मेरे तेरे दरम्याँ सदहा१ हिसाब।

दीद अन्दर दीद, हैरानम हेजाब अन्दर हेजाब
वाय बावस्फ़े ईं क़दर-राजो-नयाज़ ईं इजतेनाब।

दिल में यूँ बेदार२ होते हैं ख़यालाते-ग़ज़ल
आँख मलते जिस तरह उट्ठे कोई मस्ते-शबाब।

गेसू-ए-ख़मदार में अशाआरे-तर की ठँढकें
आतशे-रुख़सार में कल्बे-तपाँ का इल्तहाब।

चूड़ियाँ बजती हैं दिल में, मरहबा३, बज़्मे-ख़याल
खिलते जाते हैं निगाहों में जबीनों४ के गुलाब।

काश पढ़ सकता किसी सूरत से तू आयाते-इश्क़
अहले-दिल भी तो हैं ऐ शेख़े-ज़मा अहले-किताब।

एक आलम पर नहीं रहती है कैफ़ीयाते इश्क़
गाह रेगिस्ताँ भी दरिया, गाह दरिया भी सुराब५।

कौन रख सकता है इसको साकिनो-जामिद कि ज़ीस्त
इनक़लाबो - इनक़लाबो - इनक़लाबो - इनक़लाब ।

ढूँढिये क्यों इस्तेआरे६ और तशबीहो७ - मिसाल
हुस्न तो वो है बतायें जिसको हुस्ने - लाजवाब ।

हस्त जन्नत की बहारें चन्द पंखडि़यों में बन्द
गुन्चा खिलता है तो फ़िरदौसों८ के खुल जाते हैं बाब९।

आ रहा है नाज़ से सिम्ते - चमन को ख़ुशख़िराम१०
दोश११ पर वो गेसू-ए-शबगूँ१२ के मँडलाते सहाब१३।

हुस्न ख़ुद अपना नक़ीब, आँखों को देता है पयाम
आमद-आमद आफ़्ताब आमद दलीले-आफ़्ताब।

अज़मते-तक़दीरे-आदम अहले-मज़हब से न पूँछ
जो मशीअत ने न देखे दिल ने देखे हैं वो ख़्वाब।

हुस्न वो जो एक कर दे मानी-ए-फ़त्‍हो-शिकस्त
रह गयी सौ बार झुक-झुक कर निगाहे कामयाब।

ग़ैब१४ की नज़रे बचा कर कुछ चुरा ले वक़्त से
फिर न हाथ आयेगा कुछ हर लम्हा है पा-दर-रिकाब१५

हर नज़र जलवा है हर जलवा नज़र हैरान हूँ
आज किस बैतुलहरम१६ में हो गया हूँ बारयाब१७।

बारहा, हाँ बारहा मैने दमे-फ़िक्रे-सुखन१८
छू लिया है उस सुकूँ को जो है जाने- इज़्तेराब१९।

सर से पा तक हुस्न है साज़े-नुमू२० राज़े - नुमू२१
आ रहा है एक कमसिन पर दबे पाँवों शबाब।

बज़्मे - फ़ितरत सर-बसर होती है इक बज़्मे - समाअ
वो सुकूते - नीमशब का नग़्मा - ए- चंगो - रबाब।

ऐ ’फ़िराक़’ उठती है हैरत की निगाहें बा अदब
अपने दिल की खिलवतों से हो रहा हूँ बारयाब।

शब्दार्थ :
१- सैकड़ों, २- जाग्रत, ३- धन्य हो, ४- माथा, ५- मृगतृष्णा, ६- रूपक, ७- उपमा, ८- स्वर्ग, ९- द्वार, १०- अच्छी चाल वाला, ११- कंधा, १२- रात की तरह केश वाला, १३- बादल, १४- परोक्ष, १५- रिकाब में पैर जा रहा, १६- अल्लाह का घर मस्जिद, १७- प्रवेश प्राप्त, १८- काव्य चिन्तन के समय, १९ - व्याकुलता की आत्मा, २०- उभरने, उत्पत्ति लेने वाला गीत, २१- उत्पत्ति का मर्म।