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"है कोई संत राम अनुरागी / दरिया साहब" के अवतरणों में अंतर

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है कोई संत राम अनुरागी, जाकी सुरत साहबसे लागी॥
अरस-परस पिवके सँग राती, होय रही पतिबरता।
दुनियाँ भाव कछू नहिं समझै, ज्यों समुँद समानी सरिता॥
मीन जाय करि समुँद समानी, जहँ देखै तहँ पानी।
काल कीरका जाल न पहँचे, निर्भय ठौर लुभानी॥
बावन चन्दन भौरा, पहुँचा, जहँ बैठे तहँ गन्धा।
उड़ना छोड़के थिर ह्वै बैठा, निसदिन करत अनन्दा॥
जन दरिया, इक राम-भजन कर भरम बासना खोई।
पारस परसि भया लोहकंचन, बहुरि न लोहा होई॥