भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"होती है तेरे नाम से वहशत कभी कभी / नासिर काज़मी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKRachna |रचनाकार=नासिर काज़मी }} Category:गज़ल होती है तेरे नाम से वहशत कभी कभी<br> ...)
 
 
(3 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 4 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 +
{{KKGlobal}}
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=नासिर काज़मी
 
|रचनाकार=नासिर काज़मी
 
}}
 
}}
[[Category:गज़ल]]
+
{{KKCatGhazal}}
 +
<poem>
 +
होती है तेरे नाम से वहशत<ref>चिन्ता </ref> कभी-कभी
 +
बरहम<ref>बैचेन </ref>हुई है यूँ भी तबीयत कभी-कभी
  
होती है तेरे नाम से वहशत कभी कभी<br>
+
ऐ दिल किसे नसीब ये तौफ़ीक़-ए-इज़्तिराब
बरहम हुई है यूँ भी तबीयत कभी कभी<br><br>
+
मिलती है ज़िन्दगी में ये राहत कभी-कभी  
  
दिल किसे नसीब ये तौफ़ीक़-ए-इज़्तिराब<br>
+
तेरे करम से अलम-ए-हुस्न-ए-आफ़रीन
मिलती है ज़िन्दगी में ये राहत कभी कभी<br><br>
+
दिल बन गया है दोस्त की ख़िल्वत कभी-कभी  
  
तेरे करम से ऐ अलम-ए-हुस्न-ए-आफ़रीन<br>
+
दिल को कहाँ नसीब ये तौफ़ीक़-ए-इज़्तिराब
दिल बन गया है दोस्त की ख़िल्वत कभी कभी<br><br>
+
मिलती है ज़िन्दगी में ये राहत कभी-कभी  
  
दिल को कहाँ नसीब ये तौफ़ीक़-ए-इज़्तिराब<br>
+
जोश-ए-जुनूँ<ref>उन्माद </ref> में दर्द की तुग़यानियों<ref> तूफ़ान </ref> के साथ
मिलती है ज़िन्दगी में ये राहत कभी कभी<br><br>
+
अश्कों में ढल गई तेरी सूरत कभी-कभी
  
जोश-ए-जुनूँ में दर्द की तुग़यानियों के साथ<br>
+
तेरे क़रीब रह के भी दिल मुतमईन<ref>संतुष्ट </ref> न था
अश्कों में ढल गई तेरी सूरत कभी कभी<br><br>
+
गुज़री है मुझ पे भी ये क़यामत कभी-कभी  
  
तेरे क़रीब रह के भी दिल मुतमईन न था<br>
+
कुछ अपना होश था तुम्हारा ख़याल था  
गुज़री है मुझ पे भी ये क़यामत कभी कभी<br><br>
+
यूँ भी गुज़र गई शब-ए-फ़ुर्क़त<ref>जुदाई की रात </ref> कभी-कभी
  
कुछ अपना होश था न तुम्हारा ख़यल था<br>
+
ऐ दोस्त हम ने तर्क-ए-मुहब्बत<ref>प्रेम का परित्याग </ref>> के बावजूद
यूँ भी गुज़र गई शब-ए-फ़ुर्क़त कभी कभी<br><br>
+
महसूस की है तेरी ज़रूरत कभी-कभी
 
+
</poem>
ऐ दोस्त हम ने तर्क-ए-मुहब्बत के बावजूद<br>
+
{{KKMeaning}}
महसूस की है तेरी ज़रूरत कभी कभी<br><br>
+

14:06, 27 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

होती है तेरे नाम से वहशत<ref>चिन्ता </ref> कभी-कभी
बरहम<ref>बैचेन </ref>हुई है यूँ भी तबीयत कभी-कभी

ऐ दिल किसे नसीब ये तौफ़ीक़-ए-इज़्तिराब
मिलती है ज़िन्दगी में ये राहत कभी-कभी

तेरे करम से ऐ अलम-ए-हुस्न-ए-आफ़रीन
दिल बन गया है दोस्त की ख़िल्वत कभी-कभी

दिल को कहाँ नसीब ये तौफ़ीक़-ए-इज़्तिराब
मिलती है ज़िन्दगी में ये राहत कभी-कभी

जोश-ए-जुनूँ<ref>उन्माद </ref> में दर्द की तुग़यानियों<ref> तूफ़ान </ref> के साथ
अश्कों में ढल गई तेरी सूरत कभी-कभी

तेरे क़रीब रह के भी दिल मुतमईन<ref>संतुष्ट </ref> न था
गुज़री है मुझ पे भी ये क़यामत कभी-कभी

कुछ अपना होश था न तुम्हारा ख़याल था
यूँ भी गुज़र गई शब-ए-फ़ुर्क़त<ref>जुदाई की रात </ref> कभी-कभी

ऐ दोस्त हम ने तर्क-ए-मुहब्बत<ref>प्रेम का परित्याग </ref>> के बावजूद
महसूस की है तेरी ज़रूरत कभी-कभी

शब्दार्थ
<references/>