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"होम्यो कविता: ग्रेफाइटिस / मनोज झा" के अवतरणों में अंतर

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  रोता है संगीत को सुनकर।  
 
  रोता है संगीत को सुनकर।  
 
  खत्म हुई सहवास की इच्छा,  
 
  खत्म हुई सहवास की इच्छा,  
  ग्रेफाइटिस दो यही है शिक्षा।  
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  ग्रेफाइटिस दो यही है शिक्षा।
होम्यो कविता: जेल्सिमियम
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सुस्ती, चक्कर, औंघाई को जहाँ भी देखो भाई,
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जेल्सिमियम को याद रखो तो होगी बड़ी भलाई.
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वदन पर हाथ लगाते ही चिढ़ जाए,
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मंदिर-मस्जिद जाने से घबराए,
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साहसहीन किसी रोगी मेँ कंपन पड़े दिखाई,
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जेल्सिमियम को याद रखो तो होगी बड़ी भलाई.
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पास बैठना बातें करना उसको नहीं सुहाए,
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जाने को हो कहीँ अगर तो पाखाना लग जाए.
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बिना किसी कारण के बच्ची-चौंक चिपक चिल्लाई,
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जेल्सिमियम को याद रखो तो होगी बड़ी भलाई.
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न हिलने डुलने से धड़कन रुकने का डर हो,
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रोग में वृद्धि समाचार सुनने से अगर हो,
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सिर दर्द से पहले अगर अँधेरा पड़े दिखाई,
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जेल्सिमियम को याद रखो तो होगी बड़ी भलाई.
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पलकों में भारीपन आँखें खुल नहीं पाती,
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बैप्टी. कैक्टस इपिकाक है इसका साथी,
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बिना प्यास चुप्पी बुखार निगलन मेँ हो कठिनाई,
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जेल्सिमियम को याद रखो तो होगी बड़ी भलाई.
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बिना स्वप्न के स्वप्नदोष ध्वजभंग बताए,
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देरों होता दर्द जरायु खुल नहीं पाए,
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काफी। चायना डिजीटेलिस करे सफाई,
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जेल्सिमियम को याद रखो तो होगी बड़ी भलाई.
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19:04, 23 जुलाई 2019 के समय का अवतरण

कटा फटा चटचटा सोराइसिस,
 थ्री-एफ देखो दो ग्रेफाइटिस।
गाँठ-गाँठ मल कड़ा बड़ा हो,
 नख बिगड़ा गंदा चमड़ा हो।
 दुधिया प्रदर गलाता खाल,
 एक्जीमा संग पलक हो लाल।
 कर्णनाद हो सों-सोँ गड़-गड़,
 रोता है संगीत को सुनकर।
 खत्म हुई सहवास की इच्छा,
 ग्रेफाइटिस दो यही है शिक्षा।