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ॻिलनि ते लुड़िक लूणाटियूं मिठियूं ॾींदे ॼमी विया / एम. कमल

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ॻिलनि ते लुड़िक लूणाटियूं मिठियूं ॾींदे ॼमी विया।
ही मुंहिंजा समुंड-दिल ग़म-ग़ोता, ॾढु ॾींदे सुकी विया।

झलियो हो वात लफ़्जनि खे, या लफ़्जनि झलियो हो वातु।
जे जज़्बा ॿोल थी उभिरिया, ज़बां ते से बिही विया॥

उन्हनि जी लाति जूं यादूं त ईंदियूं, हू नईंदा!
फिटाए आशियानो जे पखी वण तां उॾी विया॥

जे कंडनि जा हुआ घायल, नज़र आया थे अक्सर।
मगर ॿीहर ॾिठासीं कीन जिनिखे गुल चुभी विया॥

बिना आवाज़, ऊंदहि जी नंगीअ उस में जिआं थो।
रहियूं रातियूं कमल चँड आरजुनि जा ख्वाब थी विया॥