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‘फेंकनी’ की माय ‘फगुनिया’ को / मुकेश निर्विकार

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नहीं! नहीं
बिल्कुल नहीं!
मत बताओ उसे
असल बीमारी उसकी
चिकित्सा विज्ञान की
भाषा में अपनी
डायग्नोस्टिक रिपोर्ट देखकर
डॉक्टर!
उसे जीने दो उसके
परंपरागत ज्ञान में
निपट अज्ञान में
समझने दो उसे
कि वह हो गयी है
बीमार
जूड़ी-खसरा-खांसी-ज्वर की शिकार
कि चढ़ गयी है
गर्मी उसके सिर को
जिगर की तिल्ली बढ़ गयी है
कि दिल घबरा गया है
कि गश खाकर गिर पड़ी है
ठीक हो जाएगी वह
परोस के गाँव ‘हुलासन’ के
वैद की पूरिया से

या ‘आसावरी’ के ‘दांगदार’ की दावा से
पीएगी गुनगुना पानी
नहीं खाएगी एक भी ग्रास
रहने दो जीवन की आस
चलने दो उसकी श्वास
जितनी लिखी है विधाता ने
मगर मत बताओ उसे
कि उसकी हार्ट की कोरोनरी आर्टरीज़
ब्लॉक हो गयी हैं
कि उसकी बाइपास सर्जरी होनी है
कि ब्रेन ट्यूमर है
नहीं होना सही यह दर्द
देसी घी से सिर की मालिश करने से
कि उसका जिगर बढ़ा नहीं
लीवर हैपाटाइटिस सी है
कि उसका रोग लाइलाज है
मत बताओं यह सब
दूर गाँव की मजूरनी
फेंकनी की माय फगुनिया को
उसकी धार-साध्य बीमारी
ताकि वह न मारे
समय से पहले
तुम्हारी डायगोनिस्टिक
रिपोर्ट देखकर!
डॉक्टर!
नही! नहीं!
मत बताओं यह सब
  दूर गाँव की मजूरनी
‘फेंकनी’ की माय ‘फगुनिया’ को!