भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

153 / हीर / वारिस शाह

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:21, 31 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वारिस शाह |अनुवादक= |संग्रह=हीर / व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

परे विच बेइजती कल होई चोभ विच कलेजे दे चमकदी ए
बेशरम है टप के सिरीं चढ़दा भले आदमी दी जान धमकदी ए
चूचक घोड़े ते तुरत सवार होयां हथ सांग जयों बिजली लिशकदी ए
सुम्म घोड़े दे काड़ ही काड़ वजन हीर सुनदयां रांझे तों खिसकदी ए
उठ रांझया बाबल आंवदा ईनाले गल करदी नाले रिसकदी ए

शब्दार्थ
<references/>