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1941 के जून के दिन / ग्योर्गोस सेफ़ेरिस

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सिकन्दरिया पर एक नया चाँद उगा
अपने हाथों में एक पुराना चाँद थामे हुए
और हम अपने रास्ते पर सूर्य के द्वार की ओर
हृदय की रात्रि में, -- तीन दोस्त

हमने खोजा था अपनी युवावस्था में रूपान्तर
इच्छाओं से जो चमक उठी थी बड़ी मछलियों-सी
समुद्रों में जो अचानक सिकुड़ गए :
हम विश्वास किया करते थे देह की सर्वशक्तिमत्ता में ।
और अब नया चाँद आलिंगन में उग आया है
पुराने चाँद के साथ ; और ख़ूबसूरत द्वीप लेटा है
ज़ख़्मी और ख़ून चुआता, शान्त द्वीप, शक्तिशाली, मासूम ।
और शरीर टूटी हुई शाखाओं के समान
धरती से उखड़ी हुई जड़ों के समान ।
                                  हमारी प्यास
एक घुड़सवार की मूर्त्ति
’सूरज’ के अन्धेरे ’द्वार’ पर
नहीं जानती क्या माँगे ; रक्षक बन खड़ी है
निर्वासन में यहाँ कहीं
सिकन्दर के दफ़्न-स्थान के समीप ।