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304 / हीर / वारिस शाह

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हमी भिखया वासते त्यार होए तुसीं आनके रिकतां छेड़दियां हो
असां लाह पंजालियां जोग छडी तुसी फेर मुड़ जोग नूं गेड़दियां हो
असीं छड झेड़े जोगी जो बैठे तुसीं फेर अलूद लबड़ियां<ref>गंदगी में लिथेड़ना</ref> हो
पिछों आखसो मूतने आन लगे अन्ने खूह विच सग क्यों रोड़दियां हो
वारसा भिखया वासते चले हांरी तुसी आन के काह खहेड़दियां हो

शब्दार्थ
<references/>