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अच्छाईयों के सपने / अशोक कुमार

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कितने अच्छे हो तुम
हर बार आमंत्रित करते हो
कि वे सौंप दें तुम्हें अपनी बुराईयाँ

वे सौंपते हैं निर्भीक हो कर
तुम उनकी बुराइयों से अच्छे हो जाते हो

कितने अच्छे हो तुम
तुम उन्हें अच्छाईयों के सपने दिखाते हो
और वे अपनी आधी बुराइयाँ छोड़ आधे अच्छे हो जाते हैं

उनकी आधी बुराइयाँ जैसे तुम्हें अच्छा करती हैं
अपनी बची हुई आधी बुराइयों से वे अच्छे हो जाते हैं

कितने अच्छे हो तुम
तुम उन्हें डराते हो हर बार कि अच्छे हो जाओ
और हर बार वे डर कर अपनी सिर्फ़ आधी बुराइयाँ सौंपते हैं

वे आधी बुराइयाँ महज भयवश छोड़ते हैं
और तुम उन्हें पूरा अभयदान देते हो

कितने अच्छे हो तुम
कि तुम दुनिया से आधी बुराइयाँ अपने सिर्फ़ एक कठोर कदम से दूर करने के दावे करते हो
अपनी पूरी जनता के सामने नंगे हो कर
और जनता तुम्हें नग्न नहीं शालीन मानती है

तुम उनकी आधी बुराइयों के संग अपने चेहरे को देदीप्यमान बनाते हो
और वे अपनी ऐकान्तिक शेष बुराइयों के साथ दमकते चेहरे होते हैं

कितने अच्छे हो तुम
जब तुम पूरी मानवता को अच्छे होने के सपने दिखाते हो
और वे अपनी बची हुई बुराइयों के साथ फिर पनपते हैं
फिर से तुम्हारी अच्छाईयों के घोषणाओं के लिये
फिर से अच्छा होने के लिये।