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अजब जिन्दगी / लक्ष्मण पुरूस्वानी

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अश्क गम तो दिना बेकरारी आ।
अजब हीअ जिन्दगी-वेचारी आ।।
देई वञे न दीहुं-बि उदासियूं।
रात त रूअन्दे रोज गुजारी आ।।

सूर हर जाइ ते मिलन्दा रहिया।
पर सौग़ात यार जी त प्यारी आ।।
डपु मौत जो त न आहे मगर
जिअरे त जिन्दगी प्यारी आ।।

तुहिंजी खामोशी-त घाए छदींदी
ॼणु त गोया तेज़ तिखी-कटारी आ।
जिन्दगीअ जी कथा- न मूखां पुछो।।
सही सूर केदा-संवारी आ।।

मुहिंजो अङण ई-वियो रहिजी सुको।
ॿाहिर त बारिश-अञां बि जारी आ।।
कहिंजो बि अहसान-छो खणां मां।
ॿोझु मुहिंजे मथां-अॻेंई भारी आ।।

ग़म जी मन्जिल-जेका आखरी थींदी।
हाणे उन सफर-जी तियारी आ।।