भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अधर पर ठहरी हुई एक प्यास है / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:47, 12 मई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अधर पर ठहरी हुई एक प्यास है
मुझे अब बस साँवरे से आस है

जगत भर के मोह माया जाल से
बचायेगा वो यही विश्वास है

गया शैशव और यौवन खेल में
बुढ़ापा दुर्बल न आता रास है

तभी तक इस जिंदगी का आसरा
ग्रहण करती देह जब तक श्वांस है

चक्र जीवन मृत्यु का चलता रहे
वही जीवन जो स्वयं के पास है

नहीं होता दुख परिस्थिति में किसी
खिला रहता नित अधर पर हास है

उसे भय होता नहीं है मृत्यु का
ह्रदय जिसके साँवरे का वास है