भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अपहरण / दिनकर कुमार

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:43, 22 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनकर कुमार |संग्रह=कौन कहता है ढलती नहीं ग़म क…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कोमल भावनाओं का अनजाने में ही
हृदय के चौराहे से अपहरण किया गया
फिरौती के रूप में माँगा जा रहा है
सबसे हसीन सपना

चेतावनी दी गई है कि
सपने नहीं दिए गए तो
कोमल भावनाओं का वध किया जाएगा
कोई फायदा नहीं रपट लिखवाने से

कोई फायदा नहीं थाने में
सो रही है पुलिस
राजधानी में धुत्त पड़ी है सरकार

रिक्त हृदय को सांत्वना दे पाना
संभव नहीं
सांत्वना देने का रिवाज
प्रतिबंधित हो चुका है

अपहरणकर्ताओं का कोई नाम नहीं होता
कोई चेहरा नहीं होता
हृदय नहीं होता
हृदय में संजोकर रखी गई कोमल भावनाएँ नहीं होतीं

सूखे कुएँ की तरह अपने हृदय को लेकर
कहाँ जाऊँगा मैं कहाँ जाऊँगा