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अब तो उठ सकता नहीं आँखों से बार-ए-इंतेज़ार / हसरत मोहानी
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अब तो उठ सकता नहीं आँखों से बार-ए-इंतज़ार
किस तरह काटे कोई लैल-ओ-नहार-ए-इंतज़ार
उन की उल्फ़त का यक़ीन हो उन के आने की उम्मीद
हों ये दोनों सूरतें तब है बहार-ए-इंतज़ार
मेरी आहें ना-रसा<ref>पहुँचती नहीं</ref> मेरी दुआएँ ना-क़बूल
या इलाही क्या करूँ मैं शर्म-सार-ए-इंतज़ार
उन के खत की आरज़ू है उन के आमद का ख़याल
किस क़दर फैला हुआ है कारोबार-ए-इंतज़ार
शब्दार्थ
<references/>