भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अब सिवा मेरे कहीं उसका गुज़ारा भी नहीं / कांतिमोहन 'सोज़'

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:40, 30 अगस्त 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कांतिमोहन 'सोज़' |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अब सिवा मेरे कहीं उसका गुज़ारा भी नहीं I
देख वो रुक गया गो मैंने पुकारा भी नहीं II

बच गया आज तो कल उसको भुला भी दूंगा
अब तो दिल को मेरे यादों का सहारा भी नहीं I

खत्म अफ़साना हुआ लुत्फ़ो-करम का यारो
अब वो मायल भी नहीं मुझको गवारा भी नहीं I

रात के थाल को उलटा के वो काफ़ूर हुआ
सांवली शब के कने एक सितारा भी नहीं I

सोज़ यूं बैठ के क़िस्मत को न कोसो अपनी
क्या वो खुश है जिसे तक़दीर ने मारा भी नहीं II