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अभी नहीं / विनोद शर्मा

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लैम्पपोस्ट अभी ऊंघ रहे हैं
और क्लॉकटावर की घड़ी का हृदय धड़क नहीं रहा
यों भी समय नहीं आया अभी
और साफ नहीं हुए वे रास्ते
जो तुम्हें मुझ तक लाएंगे

जिंदगी धुआं है कोहरे में लिपटा हुआ
ऐसे में नहीं हो पाती अपने-पराये की शिनाख्त
और असम्भव जान पड़ता है पहचानना
धुंधले चेहरों, दस्तानों में छुपी उंगलियों
और फुसफुसाती आवाजों को

कितने अभागे हैं हम
जो कुछ जानते हैं उसे कॉफीहाउस की मेजों पर
टूटे प्यालों और बदरंग राखदानियों में
या दफ्तर में रद्दी की टोकरियों में छोड़ आते हैं

इंतजार बिछा है रास्तों पर
और हताशा के सीमान्तों पर टटोलते हुए
अनुत्तरित सवालों के हल हम बुढ़ा जाते हैं
देखते रहते हैं उन रास्तों को
जो अभी तक साफ नहीं हुए

जो तुम्हें लाएंगे मुझ तक
धुआं...कोहरा और बर्फ
नहीं समय नहीं आया बुहारने
नगर निगम का कोई सफाई कर्मचारी भी नहीं
अभी नहीं।