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आँधी / बसन्तजीत सिंह हरचंद

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उमस है , घुटन है सारे परिवेश में ,
पत्ता तक हिलता नहीं अपने इस देश में ;
पाद - दलित तिनकों से मानी अम्बर तक ने ,
चुप्पी है साधी .
आएगी आँधी ..

वृक्षों के वक्षों को चीरेगी - फाड़ेगी,
धरती को डांटेगी, अम्बर को ताड़ेगी.
सबको झकझोरेगी ,
सबको जगाएगी ;
प्राणों में भर कर यह ,
विप्लव को गाएगी ;
आएगी जब यह
तो फिर आ ही जाएगी ,
फिर किसने बांधी ?
आएगी आँधी ..

(अग्निजा ,१९७८)