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आजुल कैसे परे हो सुख नींद सो सजना चढ़े आ रहे / बुन्देली
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बुन्देली लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
आजुल कैसे परे हो सुख नींद सो सजना चढ़े आ रहे।
आजुल कैसे कें आ गई सुख नींद सजना ने बाखर घेर लई।
बेटी आये हैं आवन दो सो सजना मोरो का करें।
बेटी हथियन में हाथी मिलाहों सो सजना मेरो का करें।
बेटी जोडूँ डड़न से दोउ हाथ नव नव कें पैंया पर लैहों।
बाबुल कैसे परे हो सुख नींद सो सजना चढ़े चले आ रहे।
बाबुल कैसे के आ गई सुख नींद सजना ने बाखर घेर लई।
बेटी आये है आवन दो सो सजना मेरो का करें।
बेटी घुड़लन में घुड़ला मिलाहों सो सजना मेरो का करें।
बेटी जोडूँ डड़न से हाथ नव नव के पैयाँ पर लैहों।
काकुल कैसे परे हो सुख नींद सो सजना चढ़े आ रहे।
काकुल कैसे के आ गई सुख नींद सजना ने बाखर घेर लई।
बेटी आये हैं आवन दो सजना मेरो का करें।
बेटी ऊँटन में ऊँटला मिलाहों सो सजना मेरो का करें।