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आठ / आह्वान / परमेश्वरी सिंह 'अनपढ़'

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मैं चिर सुहाग वाली सजनी तुम केवल मधु प्याली
तुम जीती हो अधर दंस तक
तुम जीती हो, मधुर व्यसन तक
यौवन की मदिरा से छक छक
तेरा प्रियतम जिस दिन थक-थक

सो जायेगा अचल शिविर में लिए नींद काली
रोयेंगे जीवन के सपने
तेरे वीराने और अपने
लूटी जा रही तेरी दुनिया
काल क्रूर के हाथों अपने

तन पर घर मुख सो जाओ तुम हो जीवन बाली
मैं सुहाग को हँस-हँस सजनी
मिला हृदय से प्रात: रजनी
भेज दिया सीमा पर लड़ने
भातृ भूमि है भारत जननी

तीर्थ भूमि है जाओ सजनी समर सेज खाली
मर कर भी वे अमर हो गए
सूर्य-चंद्र-आकाश कह गए
जबतक है सागर में पानी
रह जायेगी तब तक उनकी अमर कहानी

तू सुकुमार रुग्ण पति सेओ मैं अनन्त पति बाली
जिस पर फूल चढ़ा कर मानव
श्रद्धा से झुकते हों नित नव
जिसके बाली पर गर्वित हे सखि
सारा राष्ट्र विभव

लहराती है राष्ट्र ध्वजा में जिसके यश की लाली
मैं चिर सुहाग वाली सजनी तूँ केवल मधु प्याली