भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आपकी इक झलक देखकर प्यार की वो नज़र हो गया / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
आपकी इक झलक देखकर प्यार की वो नज़र हो गया
पाँव रखा जहाँ आपने हुस्न का वो शहर हो गया।
चाँदनी -सा बदन आपका संगमरमर तराशा हुआ
सुर्ख्र होठों को जिसने छुआ झूमकर गुलमुहर हो गया।
ये समाँ , ये घनी बारिशें देखकर बिजलियों की चमक
मेघ-सा मन जो उड़ने लगा इन्द्रधनुषी जिगर हो गया।
फूल-कलियाँ सितारे जवाँ रासलीला के दिन आ गये
कृष्ण के रंग में जो रँगा गुनगुनाकर भ्रमर हो गया।
वो करिश्मा हुआ है यहाँ होशवालों की नीदें उड़ीं
एक साधू सुना आजकल आपका हमसफ़र हो गया।