भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इतने टुकड़ों में बँट गया हूँ मैं / सतपाल 'ख़याल'

Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:23, 26 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सतपाल 'ख़याल' |संग्रह= }} Category:ग़ज़ल <poem> इतने टुकड़...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
इतने टुकड़ों में बँट गया हूँ मैं
खुद का कितना हूँ सोचता हूँ मैं

ये हुनर आते आते आया है
अब तो ग़ज़लों में ढल रहा हूँ मैं

हो असर या न हो किसे परवाह
काम सजदा मेरा दुआ हूँ मैं.

कैसे बाजार में गुजर होगी
बस यही सोचकर बिका हूँ मैं