भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ई जिनगी की जिनगी / अमरेन्द्र

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:12, 8 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमरेन्द्र |अनुवादक= |संग्रह=कुइया...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ई जिनगी की जिनगी
रौद बदरकटुओॅ
जेठोॅ रोॅ दुपहरिया दिन।

डीहोॅ रोॅ परती पर
कारी रँ चिड़ियाँ
मौनी सँ खेलै छै।

जिनगी रोॅ संझवाती
की भेलै कि ई
सार्है रँ लहकै छै।

गंगा कभियो-कभियो
बाकी तेॅ जीवन
कभी चीर कभी चानन।