भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

और दिवस भर / कमलकांत सक्सेना

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:34, 25 मई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कमलकांत सक्सेना |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

किश्तों में रात मिली
किश्तों में जागना,
और दिवस भर
आशा शूलों पर भागना।

प्राण रहे लोहू लुहान से
मोल भाव मन के दुकान से

सौदागर गीत मिले
बंजारिन भावना,
टूट टूट जाती है
जोड़ जोड़ कामना।

हाथों में ध्वज हैं अलाव से
चौराहे दिखते पड़ाव से

चेहरे यों बांट दिये
चटख गया आइना।
जीवन की अभिलाषा
लहरों पर बांचना।