भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

औरत होना / रंजना जायसवाल

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:46, 28 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना जायसवाल |अनुवादक= |संग्रह=ज...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

‘पोते की शादी है नाचो माँ'-उकसाया मैंने माँ को
पकड़कर ले आई ‘डीजे’ के जगमगाते फर्श पर
नए गाने, नए तराने
शोर मचाता संगीत
थिरक रहे नए लड़के-लड़कियाँ
एक नयी दुनिया
बिलकुल अलग, माँ की जी गयी
दुनिया से
फिर भी नाची माँ
खूब नाची
कमर हिलाकर
हाथ उठाकर
भीगी आँखों से माँ के नृत्य को
कैमरे में कैद करती
मैं सोचती रही –
कितनी घुलनशील होती है स्त्री
जैसे ढालो ढल जाती है
हर उम्र हर माहौल
हर रूप में रंग भर जाती है
पर इतना नाचने के बाद भी
आंचल सिर पर रखना नहीं भूली माँ
औरत होना नहीं भूली माँ।