भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कठिन जीवन / शंकरानंद

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:17, 9 मई 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |अनुवादक=शंकरानंद |संग्रह= }} {{KKCatKavita}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पानी में गुन्धे हुए आटे का दिन
ख़त्म होता है
चूल्हे की तेज़ आग पर सीझने के बाद

नमी भाप की तरह उड़ जाती है
हासिल होती है पकने की तसल्ली

यह पूरी पृथ्वी कठिन जीवन का मानचित्र है
कोई विकल्प नहीं इस हौसले का

उठता हुआ धुआँ फैलता है तो
तमाशा देखते तमाम लोग
उम्मीद से भर जाते हैं

वे इत्मीनान से जीने वाले लोग हैं
जिन्हें पता है कि
पेट की आग
न जाने कितनों को राख बना देती है ।