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कब वो सुनता है कहानी मेरी / ग़ालिब

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कब वो सुनता है कहानी मेरी
और फिर वो भी ज़बानी मेरी

ख़लिशे-ग़्मज़ा-ए-खूँरेज़ ना पूछ
देख खुनबफ़िशानी मेरी

क्या बयाँ करके मेरा रोएँगे यार
मगर अशुफ़्ता-बयानी मेरी

हूँ ज़िखुद रफ़्ता-ए-बैदा-ए-ख़्याल
भूल जाना है निशानी मेरी

मुत्काबिल है मुक़ाबिल मेरा
रुक गया देख रवानी मेरी

क़द्रे-संगे-सरे-राह रखता हूँ
सख़्त अर्ज़ान है गिरानी मेरी

दहन उसका जो न मालूम हुआ
खुल गयी है चमनदानी मेरी

कर दिया ज़ौफ़ ने अज़ीज़ "ग़ालिब"
नंगे-पीरी है जवानी मेरी