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कबहूँ तौ घाम कड़ा है / भारतेन्दु मिश्र
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कबहूँ तौ घाम कड़ा है
कबहूँ बीता भरि छाँही
हम तौ सुखान बिरवा हन
अब सुख की चिरई नाँही।
अबकी असाढु जो सूखी
तौ हरहा भूखे मरिहैं
नेता कोरे कगदन पर
नहरी दुइ चारि बनइहैं
ददुआ अब बड़े-बड़ेन पर
है नाटेन कै परछाँही।
जुगु बदलि गवा है कक्कू
सब अपनै रागु अलापैं
कामे काजे मा अब तौ
मेहरी मरदन सँग नाचैं
परिगै है भाँग कुँआ मा
सब झूमैं दै गरबाँही।