भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कलमक अनुरोध / काशीकान्त मिश्र 'मधुप'

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:57, 19 अगस्त 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=काशीकान्त मिश्र 'मधुप' |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

की कहु; कवि! प्राण बचाउ।
कामिनीक कोमल कपोल कुच, क्रीड़ा कौतुक कान्ति कलित कच-
कल्पनाक कलुषित न कुंजमे काँटहिकाँट घुमाउ।
चित्रकूट गिरिसँ अलका तक, अक्षोदहु नचलहुँ जा छल सक
छी शृंगार भारसँ व्याकुलि, अब नहि नाच नचाउ।
शुक, सारस, सारिका, कपोतक, चंचलाक चन्द्रिका इजोतक
कीर्त्तिक काव्य कतेक लिखौलहुँ वीर सुयश किछु गाउ।
कुरुक्षेत्र बनि गेल चराचर, ठरड़ दैत छी हम चारक तर
बनू कृष्ण, गीता समान किछु गायन गाबि जगाउ।
हमहीं क्रान्तिक थिकहुँ पूर्ण छवि, धीर वीर सन्तति सरोज रवि
किन्तु चन्द्र, भूषण समान कवि कतए आब हम पाउ
एक क्रौंच बालाक नदुख सहि, गेला आदि कवि कवितामे बहि
कोटि क्रौंच चीत्कार करइ अछि क्रान्तिक नीव लगाउ।
धधकल कृषक आह यज्ञानल, मातृभूमिवेदीपर अनुपल
होता बनि लेखिनी श्रूवसँ पापी समिथि जराउ।
निर्ममताक गरीब सूर्यमखमे असहायक रक्तसोम चख
दमननीति ऋत्विक हँसैत अछि संज्ञा बुद्ध धराउ।
वीर रसेँ हमरा पवित्र कय चीरि हृदयसँ लाल वारिलय
लीखि व्योम कागजमे भैरवराग, दाग छोड़बाउ।
शिवा, प्रताप, कान्ह रणधीरक छत्रशाल ओ अमर हमीरक
लीखि चरित रणजीत सिंह केर अपनो मान बढ़ाउ।
झाँसीवाली और भवानिक लिखू चरित जे लुल्य भवानिक
जे पढ़ि चण्डी नारिवृन्द बनि बाजथि ‘अस्त्र गढ़ाउ’।
देश हमर शृंगार शान्त रस मे पड़ि बनि अछि गेल परक वश
वीर रौद्र धय मूर्त्ति अपन झट बन्धन हमर कटाउ।
ग्लानि गरल सँ क्लान्त भेल तन, अछि-उपहास करैत आनजन
दासताक की पाशबद्ध छी, ध्वज स्वातन्त्र्य उड़ाउ।