भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कसम मैंने भी खाई है तुम्हें अपना बनाएँगे / चेतन दुबे 'अनिल'

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:38, 30 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चेतन दुबे 'अनिल' |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कसम मैंने भी खाई है तुम्हें अपना बनाएँगे।
तुम्हारे हाथ में दे हाथ अपने साथ लाएँगे।

फिराकर यों नज़र अपनी चुराकर दिल चली जाओ-
तुम्हारे बिन मोहब्बत के सपन मुझको न भाएँगे।

भरा बादल समझकर मैं तुम्हारे पास आया था-
नहीं मालूम था दर से यों खाली लौट जाएँगे।

हमीं हैं जो तुम्हारे ये सभी नखरे उठाते हैं-
जभी तुम रूठ जाओगी तभी तुमको मनाएँगे।

अगर तुमने हमारे प्यार को देदी चुनौती तो
जनम भर हम तुम्हारी याद में आँसू बहाएँगे।

जहाँ में हर किसी की एक अलग तक़दीर है जानम!
कि तुम सपने सजाओगी और हम सपने मिटाएँगे।

मुझे मालूम नहीं था कि तुम्हारा दिल है पत्थर का
तुम्हारे दिल से टकरा कर कई दिल टूट जाएँगे।