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कहाँ मिलिहें मोरा अवध बिहारी हो / महेन्द्र मिश्र

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कहाँ मिलिहें मोरा अवध बिहारी हो।
खानपान कछु नीको ना लागे तनम न दसा बिसारी हो।
एक आस विसवास धरे हूँ चाहूँ दरस तिहारी हो।
क्रीट मुकुट मकराकृत कुंडल धनुष बाण कर धारी हो।
स्याम गात सरसीरूह लोचन अवरू पितम्बर धारी हो।
जब-जब भीड़ होत भगतन पर धाए काज बिसारी हो।
हमरी बेर कस देर किए प्रभु कौन सी चूक हमारी हो।
द्विज महेन्द्र श्री रामचंद्र जी सुनिए विनय हमारी हो।
दरसन देहु कृपा सुख सागर सभ अपराध नेवारी हो।