भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कहाँ हो मुक्तिदाता / असंगघोष

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:02, 10 अक्टूबर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=असंगघोष |अनुवादक= |संग्रह=खामोश न...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नाचता रहा दिन-बदिन
अपनों की ही उँगलियों पर उनके इशारों के अनुरूप
तृप्त करता रहा
उनकी लालसाएँ
हरदम मारकर अपनी इच्छाएँ
जन्म से ही मजबूत अदृश्य धागों में बँधा
मैं आज तक बंधुआ हूँ,
और तुम!
कहाँ चले गए हो
मुक्तिदाता?