भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कायसास बहु घालिसील माळ / गोरा कुंभार

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:22, 1 जून 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संत गोरा कुंभार |अनुवादक= |संग्रह= ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कायसास बहु घालिसील माळ। तुज येणेविण काय काज॥ १॥
एकपणें एक एकपणें एक। एकाचें अनेक विस्तारिलें॥ २॥
एकत्व पाहतां शिणलें धरणीधर। न चुके येरझारा संसाराची॥ ३॥
म्हणे गोरा कुंभार कोणी नाहीं दुजें। विश्वरूप तुझें नामदेवा॥ ४॥