भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कास कुसुमों से मही औ"... / कालिदास

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:30, 6 मई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=कालिदास |संग्रह=ऋतुसंहार‍ / कालिदास }} Category:संस्कृत :...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: कालिदास  » संग्रह: ऋतुसंहार‍
»  कास कुसुमों से मही औ"...
प्रिये ! आई शरद लो वर!

कास कुसुमों से मही औ" चन्द्र किरणों से रजनी को

हंस से सरिता-सलिल औ" कुमुद से सरवर-सुरम को,

कुमुद भार विनीवसप्तच्छदों से उन वनान्तों को

शुक्ल करती, प्रतिदिशा में दीप्ति फैला अमल शुचितर,

प्रिये ! आई शरद लो वर!